सौ. मृदुला का आग्रह हुआ आदरणीय उषा जीजी के 75 वे जन्म दिवस के लिये उनके साथ जुडी हुई कुछ यादें कुछ सुखद घटनाआंs को मै व्यक्त करु। अंतर कुछ सुखद अनुभतियॉँ कुछ भूली बिसरी यादें जो मेरी स्मृती पटल पर गहरी छाप छोड गई है व्यक्त करने का प्रयास कर रही हूं।
आदरणीय उषा जीजी मुझसे बडी है, पद मे भी और आयु मे भी। अंत सम्बोधन से पहले आदरसूचक शब्द आवश्यक है। मेरा प्रथम परिचय सम्मवत 1960-61 मे दिल्ली मे हुआ था जब मै बडी जीजी (सीता जीजी) के बेटे जितेन्द्र भैया के विवाह मे गई थी। मेरे साथ मेरा 2-3 साल का बेटा भी था। जीजी ने वहॉँ स्वयं ही परिचय पूछते हुऐ प्रश्न सूचक शब्दें में मुझसे पूछा ’आप गोरकपूर वाली भाभी है ना ? मैने हॉँ मे उत्तर देते हुऐ पूछा आप को कैसे मालूम पडा? तो बोली मुन्ना की शकल बिल्कुल भैया के जैसी है। वहॉँ उस छोटी सी मुलाकात में ही उनके बात करने का ढंग उनका सौम्य व्यवहार मन को छू गया।
दूसरी घटना मुझे याद है। जीजी-जीजाजी अपने मित्र दम्पीत के साथ नेपाल (Kalimpong) से बम्बई जाने हेतु गोरखपुर आये थे। आपने प्रवास के दौरान एक दो दिन उनको रुकना था शायद। उन लोगें का आतिथ्य कर मुक्त पतिपत्नी को बहुत ही अच्छा लगा। हमारे बम्बई आने पर जीजाजी हम लोगों से अवश्य मिलते। कभी पिक्चर ले जाते कभी रेस्ट्रॉँरनट कभी घर पर। अपने गोरखपुर आने का जिक जरुर करते और सराहना भी।
वक्त का पीछा चलता रहा। समय समय पर हम पारिवारीक शादी विवाहें मे कभी बम्बई या इलाहाबाद, कभी बैगलोर तो कभी गोरखपुर मे मिलना हुआ। यादें की कडियॉँ जुडती गई, निकटता बढती गई। कभी खाली समय में घटनाऍँ आखें के सामने चल चित्र की भॉँति घूम जाती है।
हमारा स्नेह जो एक बीज से अंकुरित होकर हमारे हदय में एक विशाल वृक्ष का रुप धारण कर चुका है क्या कभी घराशापी हो सकता है?
75 वे जन्म दिवस पर हम सब की हार्दिक शुभ कामनायं प्रेषित हैं। ईश्वर जीजी को बच्चें का तथा हम सब का प्यार और सन्मान प्रदान करते रहे; आजीवन स्वस्थ रखे।